Thursday, 26 September 2013

अन्तर्द्वन्द्व



क्यों चुननी पड़ती है राह कोई एक
क्यों  अनचुनी राहें ही अधिक लुभाती है
क्यों लगता है कुछ छूट सा रहा है
जबकि जानती हूँ, सब कुछ पाया नहीं जा सकता

क्यों सिक्के के सिर पैर साथ नहीं होते
कि  उसे उछालकर चुनना न पड़े कोई विकल्प
क्यों मन हर दिशा की सैर कर आता है
कि एक ही दिशा में जा सकती हूँ मैं 

गलत और सही का अंतर कर पाना विवेक है
पर क्यों फैसला करना पड़ता है
सही और सही में, ज्यादा सही का

अपनी मुठ्ठी में पूरी दुनिया नहीं समेट सकती
बाहें फैला भी लूं तो आसमाँ बड़ा पड़ जाता है
सही भी है, सबको मिलनी चाहिए अपने हिस्से की धूप
पर क्यों चुनना पड़ता है सूरज का एक कोना

ये लालच नहीं मेरा कि सब कुछ पाना चाहूँ
पर चुनाव का अन्तर्द्वन्द्व है, कि किस ओर जाऊं


क्यों चुननी पड़ती है राह कोई एक
फिर  क्यों  अनचुनी राहें ही अधिक लुभाती है