तुम अखबार हो
नया, मेज़ पर, चाय की चुस्कियों के साथ,
हमारे संभ्रांत होने का प्रतीक।
थोड़ा पुराना, रेंक में, अपने जैसों के साथ।
और पुराना, अलमारी में,
तह किये कपड़ों के नीचे,
या फिर किसी टिफ़िन में रोटी के चारों ओर
वर्ना किसी कबाड़ में अपना मोल कराते।
नब्बे के दशक में होते, तो किसी सरकारी स्कूल के विद्यार्थी की किताब पर चढ़ जाते।
याद रक्खो, तुम अखबार हो,
तुम्हारी नियति है,
केवल एक दिन का मनोरंजन
फिर रोटी, कपडा, किताब, कुनबा,
और उनकी
सुरक्षा