रखो समत्व का भाव जीवन में चाहे ख़ुशी या चाहे खेद,
चाहे अपने प्राणतत्व में हो गये हो कितने ही छेद,
खोखली होकर ही तो बंसी मधुर मधुर सी तान कहे,
तभी तो दुनिया वाले उसको मोहन की पहचान कहे।
पीटा जाता है तबला तब ला पाता वह मधुरिम धाप,
मिलते न अहिल्या को राम जो होता न पथरीला शाप,
सुख दुःख के मंथन में पीते सुख का प्याला बन कर सुर,
दुःख का हलाहल पीने वाला सीधे जाता है शिवपुर।
धुप में तपकर ही तो बरगद सबको छाया दे पाता,
बिन अग्नि का ताप सहे क्या सोना माया दे जाता,
जीवन है एक जलती चिता सम चारो तरफ छाए मातम,
बैठो बन प्रहलाद चिता में पत्थर में हो परमातम।
घोर ठण्ड गहन आतप में नग्न पैर चलना मुश्किल,
चलने वाला साधू सिद्धि मुक्ति की पाता मंज़िल,
बिन पतझड़ को लांघे क्या मौसम में आता है मधुमास,
मिलता है रामराज्य उसी को सहे जो समता से वनवास।
अपने रंगीले पंख को खोकर मोर तो रोता बिलखता है,
लेकिन होती पूजा उसकी मोहन मुकुट वो सजता है,
कहाँ मखमल कहाँ दलदल चंदना फिर भी रखती रही समभाव,
दुनिया वालों का विष पीकर मीरा चढ़ी भक्ति की नाव।
इश्वर चाहे जो कुछ करता अच्छे के लिए ही करता है,
कहीं जीत-हार कहीं पुष्प-हार वह नयी उम्मीदें भरता है,
शत लौह द्वार जो बंद करें तो एक स्वर्णिम द्वार खोले रखता,
इसी तरह सुख दुःख के पलड़े आपस में तोले रखता।
--------------------अंशु पीतलिया
चाहे अपने प्राणतत्व में हो गये हो कितने ही छेद,
खोखली होकर ही तो बंसी मधुर मधुर सी तान कहे,
तभी तो दुनिया वाले उसको मोहन की पहचान कहे।
पीटा जाता है तबला तब ला पाता वह मधुरिम धाप,
मिलते न अहिल्या को राम जो होता न पथरीला शाप,
सुख दुःख के मंथन में पीते सुख का प्याला बन कर सुर,
दुःख का हलाहल पीने वाला सीधे जाता है शिवपुर।
धुप में तपकर ही तो बरगद सबको छाया दे पाता,
बिन अग्नि का ताप सहे क्या सोना माया दे जाता,
जीवन है एक जलती चिता सम चारो तरफ छाए मातम,
बैठो बन प्रहलाद चिता में पत्थर में हो परमातम।
घोर ठण्ड गहन आतप में नग्न पैर चलना मुश्किल,
चलने वाला साधू सिद्धि मुक्ति की पाता मंज़िल,
बिन पतझड़ को लांघे क्या मौसम में आता है मधुमास,
मिलता है रामराज्य उसी को सहे जो समता से वनवास।
अपने रंगीले पंख को खोकर मोर तो रोता बिलखता है,
लेकिन होती पूजा उसकी मोहन मुकुट वो सजता है,
कहाँ मखमल कहाँ दलदल चंदना फिर भी रखती रही समभाव,
दुनिया वालों का विष पीकर मीरा चढ़ी भक्ति की नाव।
इश्वर चाहे जो कुछ करता अच्छे के लिए ही करता है,
कहीं जीत-हार कहीं पुष्प-हार वह नयी उम्मीदें भरता है,
शत लौह द्वार जो बंद करें तो एक स्वर्णिम द्वार खोले रखता,
इसी तरह सुख दुःख के पलड़े आपस में तोले रखता।
--------------------अंशु पीतलिया