Monday, 27 February 2012

जन्म

वसुंधरा की गोद में सो रहा है बाल बीज,
वितान के विधान का जो कर रहा है ध्यान खींच,
गर्भ काल पूर्ण हुआ श्रावणा की रात है,
अब तो दिशा गुन्जाओ जन्म की सौगात है।


प्राकृतिक चमकार है अम्बर ख़ुशी से रो रहा,
कोख अवनी का आँगन हो गया हरा भरा,
चंदा सा है मुखड़ा शिशु का चंदा भी लजा गया,
बादलों के घूँघट से लाज वो बचा गया।

जन्मोत्सव के गीत गाती देवियों का शोरगुल,
निहारती नीहार कण को नन्हे हाथों पे विपुल,
स्वर्ग की ये परियां जग को दे रही आमंतरण,
अब तो जागो रे जगत हो गया है नव सृजन।



ख़ुशी के लड्डू बांटता आकाश वो परमपिता,
प्राची का वो लाडू एक जगत को प्रकाशता,
सहस्त्र रश्मि सूर्य की शिशु को देती नवजीवन,
धरती माँ के बाल का आह ! हो गया सूरज पूजन।

जा रहे अतिथि देव देवियाँ भी जा रही,
अपने शिशु की याद उनको तृण महल की आ रही,
ख़ुशी के बीच बीज वो जमा रही अपनी जड़ें,
नया जीवन शुरू हुआ इस घर में वो फले फूले।

माँ का आशीष शिशु शीत जल से प्राप्त कर रहा,
कठोर पिता का ह्रदय भानु आतप बरस रहा,
हमराही इसकी बहना ठंडी हवा का यूँ बहना,
अपनी बहन के प्यार में उसका यूँ झूला झूलना|

माता-पिता बहन का आशीष तो जरूरी है,
बिना जल आतप बिना हवा उसकी बढ़त अधूरी है,
माता की शीत ममता पिता की ये कठोरता,
बहना का यूँ बहना उसके जीवन की ठौरता।

रात्री में स्वांग धर पिता शीत शशि बन आया,
उसने सोते बाल के गाल को यूँ सहलाया,
ले आया साथ लाख दास वे भी पंखा झल रहे,
टिमटिमाती रौशनी फैला अनवरत वो चल रहे।

कितना मनोहारी है दृश्य आह! किसी का जन्मना,
ये खुशियाँ, गीत चमक दमक में झूले ललना,
माता पिता की गोद में नन्हें शिशु का पलना,
प्रकृति हो या मनुज हो ये सौभाग्य है मनभावना।
  
                                                 ----------------- अंशु पीतलिया 
 


 


 
 
     

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